Tuesday, April 6, 2010

दूबे चले चौबे बनने और बन गए दुबई

सानिया मिर्जा और शोएब मलिक में क्या कॉमन है? यही की दोनों अपने-अपने कंट्री के फ्लॉपस्टारर्स हैं. एक की टेनिस से ज्यादा शरीर के वजन की चर्चा होती है तो दूसरे का क्रिकेट कैरियर दांव पर लगा है. गौर करियेगा कि सानिया मिर्जा इंडिया की और शोएब मलिक पाकिस्तान के, पर शादी के बाद दोनों हो जाएंगे दुबई के. अब बॉस...आप ही बताइये कि अपने कंट्री के सारे भगोड़े क्रिमिनल्स कहां जा के रहते है? नो कंमेंट. हैदराबाद और दुबई के बीच भी बहुत गहरा रिलेशन है..क्योंकि दुबई के शेख (एक्पाइर्ड खूसट टाइप) अपने लिए कमसिन मुर्गियों को इसी शहर से चुन-चुन कर ले जाते है. अतः लगता है कि सभी हैदराबादी मुर्गियों की बस यही तमन्ना रहती है क्या कि शादी के बाद अपना घर सिर्फ हो दुबई. तभी तो बापू.. शोएब मियां को शायद न चाहते हुए भी दुबई में दुबकने को मज़बूर होना पड़ा. एक गुप्त सूत्र सरकार को फ्री में एडवाइस देना चाहता है कि जल्द से जल्द एक शहर का नाम दुबई कर दिया जाए. इससे दो फायदे होंगे- 1. अपने कंट्री के सारे भगोड़े क्रिमिनल्स कनफ्यूज्ड होकर यहीं धरा जाएंगे. 2. कबूतरबाजी होगी भी तो धी कहां गिरेगा...अपने ही दाल में और कहां?

Thursday, March 18, 2010

माला की माया या फिर माया की माला

माफी चाहता हूं कि विगत दो हफ्तों से भी ज्यादा वक्त से अपने दिमागी कोई खुराफात लिख नहीं सका...कारण..सच कहुं तो..आलस्य..और बहाने (सभी असफल लोगों की असली जमा-पूंजी). खैर..अब मुद्दे पर आते हैं. वैसे तो कई मुर्दे..oops..sorry…मुर्दे नहीं मुद्दे आसमान में हबड़-दबड़ कर रहे हैं जैसे महिला आरक्षण बिल (पहले मुझे लगा कि अक्सर रेस्तरां में पुरुष ही बिल पे करते हैं लेकिन शायद इस आरक्षण के बाद अब महिलाएं ये बिल पे करेंगी..)खैर , फिर IPL क्रिकेट की चकाचौंध (मुझे लगता है कि पब्लिक तो सिर्फ जलफांफी (चौंध) पर लपक रहा है असली चका-चक तो खिलाड़ियों की हो रही है.जो..कम खेलकर ज्यादा माल-ए-मुरब्बा उड़ा रहे हैं). लेकिन जो मामला मुझ जैसे खुरलुचिया को दो दिन से पेरे और रगड़े हुए है वो है जेनेटिक मोडिफाइड मालाओं का. अच्छा...आप ही बताइये कि ‘माला’ शब्द आते ही आपके दिमाग में क्या आता है?...गर्भनिरोधक गोली (माला डी)...कुमारी माला..या..फूलों की माला. हां कभी-कभी जूतों की माला और नोटों की माला भी आंख के सामने तैर जाता है. जूतों का माला तो सामाजिक सरोकारों से उपर उठे प्राणियों के जर्रानवाजी के काम आता है पर नोटों की माला या तो शादी-वादी में दुल्हा के साजो-स्रिंगार का एक प्रसाधन होता है या फिर देवियों की मूर्ति पर चढ़ाया जाता है..जो फाइनली मुर्ति विसर्जन के टाईम पंडित जी के झोला में जय बमभोला कहते विसर्जित हो जाता है. लेकिन अपने देश के उत्तर के एक प्रदेश में नेताइन जी पूरा लोड लिए हैं. लाल गांधी...पीला गांधी..हरा गांधी...सभी गांधियों को एसे मड़ोड़ा कि उनके शरीर के 206 हड्डियों के पुर्जे- पुर्जे हो गए होंगे. फिर उनको बड़े-बड़े सूओं से सीकर एक भीमकाय माला बना दिया गया. फिर उसे गरीबों की रानी के गले में डाल दिया जाता है. फिर गरीबों की रानी गरीबी पर एक लेक्चर देती हैं और आश्वाशन भी की अव मनु-उनु नहीं चलेगा क्योंकि गाँधी जी को वो अपने गले से लगा कर रखती हैं. कोई रंगभेद नहीं चलेगा क्योंकि उनके माला में हर रंग के गाँधी जी हैं और दूर गाँव में टूटी झोपड़ी के आगे बैठा अधिसूचित गरीब जनता फिर से खुश होकर गरीबों की रानी को फिर से वोट देने का प्रण लेता है...और गाँधी जी की आत्मा फिर से चिंतन-मनन में बैठ जाता है कि अब इन गरीबों की रानियों से स्वतंत्रता के लिए कौन-सा फार्मूला डेवलप करें. और मैं भी कुछ उसी तरह की मुद्रा में बैठ गया हूं.

Tuesday, March 2, 2010

होली की गप्पबाजी


कल होली की शाम की कहानी ही कुछ अजीब था. दिन-भर तो मुहल्ले के सभी लोग हाथ में रंग-अबीर ले कर होली है..होली है चिल्ला कर एक दूसरे के पूरे शरीर पर रंग लगा रहे थे मानो कोलंबस फिर से कुछ खोज रहे हों. शाम को राँची को मोरहाबादी मैदान के एक किनारे अपने मित्रों के साथ जमघट लगाकर बैठ गया. फिर सभी विद्वानों द्वारा होली के उदभव पर गंभीर बहस ऐसे छिड़ गया जैसे मंत्रीमंडल में मंहगाई, आतंकवाद, नक्सलवाद, संप्रदायवाद आदि पर बहस छिड़ जाता है. लेकिन विद्वत-समूह ने यह तय किया कि सभा तभी विरमित होगा जब एक ठोस कथा सर्वसम्मति से पास हो जायेगा. सभी ज्ञान के महासमुद्र में गोते लगाने लगे. अलग-अलग भाव-मुद्रा तो देखते ही बनता था मानो ऐसे जैसे कि पीएम ने पेट्रोल के दाम को बढ़ाने के लिए लोकलुभावन उपाय सहित एफ.एम को सोचने को कहा हो. कोई आसमान में पूनम की चाँद को निहीरते सोच रहा था तो कोई मैदान में खेल रहे चूहों को देखकर. खैर, अंत में सभी मेरे तरफ मुखातिब होकर, मुझे ही होली के उदभव की कथा तय करने के लिए ऑथोराइज्ड किया. मैने गंभीरते से कहना शुरु किया- जानते हैं.. होली का उदभव चीन में हुआ था. वहां लिन हो और चिन ली नामक दो भाई रहते थे. दोनों की आपस में कट्टर दुश्मनी थी. सालों भर आपस में खूनी लड़ाई लड़ते रहते थे. गाँव के सभी लोग उनके इस खूनी लड़ाई से परेशान थे. तभी वहां भारत से एक अहिंसक साधु पहुंचे. सभी ने उनसे इन दोनों भाईयों के आपस की खूनी लड़ाई को खत्म करवाने की गुहार लगाई. अहिंसक साधु ने दोनों भाईयों से इस खूनी लड़ाई के कारण को पूछा तो वे बोले कि उन्हें खून का लाल रंग बहुत पसंद है इसलिए वे ब्लडी फाईट करते हैं. यह सुनकर अहिंसक साधु ने सलाह दिया कि वे दोनों भाई आपस में लाल रंग लगा लिया करें इसके लिए ब्लडी फाईट करने की क्या जरुरत है. दोनों भाई सहसा ही बोल उठे कि ले बाप ये आईडिया हमारे दिमाग में क्यों नही उठा. दोनों भाई अहिंसक साधु के चरणों में घुलट गए. सभी ग्रामीण साधु का जय-जयकार करने लगे. सभी ने इस रंग भरे पर्व का नाम दोनों भाई के सर नेम को मिला कर रखा “होली”. बाद में चायनीज आयटम की तरह यह पर्व इंडिया में एक्सपोर्ट हो गया और हमलोगों ने इसे सस्ता और टिकाऊ समझ कर अपना लिया.

Monday, March 1, 2010

अबकी होली, सबकी होली


वैसे तो हर साल होली मनाने में मज़ा आता है, मगर इस बार के होली की अलग थी बात... क्योंकि वित्तमंत्री के मंहगे बजट के बाद आहत दिल को भारतीय हॉकी टीम ने पाकिस्तान को 4-1 से हराकर जो मरहम लगाने का काम किया, उसके कारण आम जनता अपने सारे ग़म भुलाकर.. जमकर फाग खेली. बॉस.. भारतीय हॉकी टीम पाकिस्तानियों पर ऐसे गोल ठोक रही थी..जैसे हमलोग आये अतिथियों-पड़ोसियों को पटक-पटक कर रंग लगाते हैं और चिल्ला-चिल्ला कर गाते हैं – बुरा ना मानो होली है (वैसे बुरा मान ही लोगे तो कौन से वित्तमंत्री मंहगाई कम कर देंगे). मैने बहुत डीपली जाकर सोचा.. कि हमारे वित्तमंत्री ने ऑलरेडी मंहगाई की मार झेल रही जनता को ठीक होली से पहले इतना मंहगा बजट क्यूँ दिया....तब जा कर कहीं समझदानी की कटोरी में ये बात जाकर अटकी कि होली के “दिन दिल मिल जाते हैं..दुश्मन भी गले मिल जाते हैं..” और हम उस औरत की तरह हैं जो रो-गाकर भी अपने कर्तव्य को पूरा कर ही डालती है...वो लोग उस दरोगा की तरह हैं जिसे लाख मानवीय मूल्य समझाएं..मगर वो समझने का भी मूल्य मांगने में थोड़ा भी संकोच नही करता...खैर..जब जनता अपके साथ हो ली तो फिर अबकी होली, सबकी होली..

Saturday, February 20, 2010

बिरेन्द्र सेहवाग बोले तो झक्कास क्रिकेट की गारंटी...बापू


शोले के बीरू का वो डॉयलोग तो याद ही होगा “….एक-एक को चुन-चुन कर मारुंगा” क्रिकेट के शोले का वीरू भी बैटिंग करते वक्त मन-ही-मन यही डॉयलोग दुहराता “….एक-एक बॉल को चुन-चुन कर मारुंगा”. क्रिकेट के हर फॉर्मेट में तबड़तोड़ बल्लेबाजी तो उनकी अदा है. तभी तो टेस्ट मे सबसे तेज 250 रन, 300 रन का विश्व रिकार्ड. वन डे में सबसे तेज शतक एवं अर्ध-शतक का भारतीय रिकार्ड सेहवाग के नाम है. बॉलर हमेशा बॉल को देखते हुए यही सोचता होगा कि मुझे तो यह गेंद ही दिखता है पर क्या यह वीरू को फुटबाल दिखता है. अच्छा, शॉट भी ऐसा की फिल्डर डर के मारे छूने की कोशिश भी नहीं करता है. अब तो वीरू टेस्ट का सुल्तान (No. 1) बल्लेबाज भी बन गए हैं..इसका मतलब कि एक तो सेहवाग उस पर से नं0 1 बल्लेबाज..यानि एक तो करैला ऊपर नीम चढ़ी..अब तो साउथ अफ्रीकी बॉलरों का तो भगवान भी मालिक नहीं है...सेहवाग खुद गलती करे तभी कुछ संभव है.

Thursday, February 18, 2010

Kapil Sibal is ready to change the education pattern

कपिल देव और कपिल सिब्बल में नाम के अलावे एक और समानता है वो है कि पहले ने भारतीय क्रिकेट में नये तरीके से फास्ट बॉलिंग को स्थापित किया जबकि सिब्बल साहब, देश में नये तरीके से पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था को स्थापित करने के भागिरथी प्रयास में लगे हैं. मानव संसाधन विभाग मंत्री के रूप में पढ़ाई-लिखाई के तौर-तरीकों का जिस तरह से “पेरेस्त्रोइका” माने पुनर्जागरण-पुनर्निर्माण करने की दिशा में सधे कदमों से प्रयास कर रहे हैं वो उनके भविष्यद्रष्टा होने की परिकल्पना को जीवंत रखता है. गौर करने वाली बात है कि वो और उनकी टीम अपने ग्रे मैटर का उपयोग कर जो निर्णय और बहस को लोगों के बीच रख रहे हैं वो ध्यानाकर्षक हैः (क) बच्चों के स्कूल बैग का वजन (ख) नर्सरी क्लासेस के लिए उम्र कम से कम 4 वर्ष (ग) 9वीं और 10वीं के लिए गणित एवं विज्ञान का पूरे देश में एक पाठ्यक्रम (घ) पूरे देश में हिन्दी की एकरूपता से पढ़ाई-लिखाई (च) 10वीं की ग्रेडिंग आधारित परीक्षा (छ) रैगिंग पर, कॉलेज और विद्यार्थी, दोनों को कठोर दंड (ज) खुला विद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या में इजाफा करना (झ) सरकारी और निजी स्कूलों के लिये नियम-कानून (ट) डिग्री में एडमीशन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर चयन परीक्षा (ठ) पढ़ाई का अधिकार (RTE) Act, 2009 की तैयारी (ण) रेलवे के साथ करारः रेलवे के चयनित ज़मीन पर केंद्रीय एवं नवोदय विद्यालयों का निर्माण (त) विदेशी वि0 वि0 के लिए भारतीय स्पेकट्रम खोलने की तैयारी...अभी यह क्रम जारी है. समय आ गया है कि इस रिफॉर्म में आप-हम शामिल हो जाएं और अपने विचार रखें. आपके कमेंट का भूखा ...

Sunday, February 14, 2010

Puna Terrorist attack: अति सर्वत्र वर्ज्यते

“क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो...वो क्या जो दंत हीन, विष हीन विनीत सरल हो...“---- मैं क्या...हर भारतीय के दिल में, बस एक ही बात उठ रही है कि पूणे में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत क्या करेगा. क्या फिर से पत्रों द्वारा भारत पाकिस्तान से डोजियर – डोजियर खेलेगा या फिर भारत के राजा-मंत्री विदेशी आकाओं के आंचल में अपना सर रख कर शिकायत- शिकायत खेलेंगे. फिर विदेशी आका हमें पुचकारते हुए पाकिस्तान को बड़े प्यार से डांटेंगे और अगले ही दिन उसे कई अरब डॉलर का लॉलीपॉप चाटने के लिए देंगे. धिक्कार है! पाक समर्थित आतंकवादी, एक हफ्ता पहले, पाकिस्तान के एक सभा में तान कर पूणे में हमला की धमकी देते हैं और सफल होते है. क्यूं ना हो “वीर भोग्यं वसुन्धरा” वे वीर है. जो बोलते हैम वो कर दिखाते है और एक हम हैं कि जो हमें बार-बार लात मारता है हम उसे अपने यहां बात करने के लिए आमंत्रित करते है कि आओ और आकर कृपा करो..अब कुछ लिखने को मन नहीं कर रहा है. आप ही अब बातों को आगे बढ़ाइये..कमेंट करें..जय भारत