Tuesday, March 2, 2010

होली की गप्पबाजी


कल होली की शाम की कहानी ही कुछ अजीब था. दिन-भर तो मुहल्ले के सभी लोग हाथ में रंग-अबीर ले कर होली है..होली है चिल्ला कर एक दूसरे के पूरे शरीर पर रंग लगा रहे थे मानो कोलंबस फिर से कुछ खोज रहे हों. शाम को राँची को मोरहाबादी मैदान के एक किनारे अपने मित्रों के साथ जमघट लगाकर बैठ गया. फिर सभी विद्वानों द्वारा होली के उदभव पर गंभीर बहस ऐसे छिड़ गया जैसे मंत्रीमंडल में मंहगाई, आतंकवाद, नक्सलवाद, संप्रदायवाद आदि पर बहस छिड़ जाता है. लेकिन विद्वत-समूह ने यह तय किया कि सभा तभी विरमित होगा जब एक ठोस कथा सर्वसम्मति से पास हो जायेगा. सभी ज्ञान के महासमुद्र में गोते लगाने लगे. अलग-अलग भाव-मुद्रा तो देखते ही बनता था मानो ऐसे जैसे कि पीएम ने पेट्रोल के दाम को बढ़ाने के लिए लोकलुभावन उपाय सहित एफ.एम को सोचने को कहा हो. कोई आसमान में पूनम की चाँद को निहीरते सोच रहा था तो कोई मैदान में खेल रहे चूहों को देखकर. खैर, अंत में सभी मेरे तरफ मुखातिब होकर, मुझे ही होली के उदभव की कथा तय करने के लिए ऑथोराइज्ड किया. मैने गंभीरते से कहना शुरु किया- जानते हैं.. होली का उदभव चीन में हुआ था. वहां लिन हो और चिन ली नामक दो भाई रहते थे. दोनों की आपस में कट्टर दुश्मनी थी. सालों भर आपस में खूनी लड़ाई लड़ते रहते थे. गाँव के सभी लोग उनके इस खूनी लड़ाई से परेशान थे. तभी वहां भारत से एक अहिंसक साधु पहुंचे. सभी ने उनसे इन दोनों भाईयों के आपस की खूनी लड़ाई को खत्म करवाने की गुहार लगाई. अहिंसक साधु ने दोनों भाईयों से इस खूनी लड़ाई के कारण को पूछा तो वे बोले कि उन्हें खून का लाल रंग बहुत पसंद है इसलिए वे ब्लडी फाईट करते हैं. यह सुनकर अहिंसक साधु ने सलाह दिया कि वे दोनों भाई आपस में लाल रंग लगा लिया करें इसके लिए ब्लडी फाईट करने की क्या जरुरत है. दोनों भाई सहसा ही बोल उठे कि ले बाप ये आईडिया हमारे दिमाग में क्यों नही उठा. दोनों भाई अहिंसक साधु के चरणों में घुलट गए. सभी ग्रामीण साधु का जय-जयकार करने लगे. सभी ने इस रंग भरे पर्व का नाम दोनों भाई के सर नेम को मिला कर रखा “होली”. बाद में चायनीज आयटम की तरह यह पर्व इंडिया में एक्सपोर्ट हो गया और हमलोगों ने इसे सस्ता और टिकाऊ समझ कर अपना लिया.

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